हम हमारे रोज़-मर्रा कि ज़िंदगी में कई भाषाओं का इस्तेमाल करते है । मै अगर अपनी बात करूं तो मै अंग्रेज़ी, हिंदी, उर्दू, मराठी और दक्खनी का इस्तेमाल अपनी बातचीत में किया करता हूँ । हाँ जानता हूँ, हम सबको दक्खनी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता, मै भी कुछ वक्त पहले तक नहीं जानता था । कोई नहीं । मुझे यकीन है कि आपने हैदराबादी भाषा के बारे में ज़रूर सुना होगा ।
यह भाषा हम सब ने सुनी है और हमें बड़ी मज़ाकिया और मस्करी लगती है, न जाने क्यों । हम जिसे हैदराबादी भाषा कहते है उसका असली नाम दक्खनी है । हैदराबादी भाषा कहते ही मेरे ज़ेहन में एक बात आती है जो कि लोगों ने मुझसे कई बार कही है, "और मियाँ, क्या चल रहा?"
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हाओ, नक़्को, काइकू, कैसा, खाको, करको और न जाने कितने ऐसे अल्फ़ाज़ है जो कहीं न कहीं हमारी आम भाषा जैसे लगते है मगर है नहीं । दक्खनी भाषा के बारे में जब मैंने अच्छा-खासा पढ़ लिया तो मुझे एहसास हुआ कि हिंदी और उर्दू से यह कुछ अलग है । अक्सर यह भाषा दक्षिण हिंदुस्तान में ज़्यादा बोली जाती है ।
दक्खनी बोलना सिर्फ भाषा का ही नहीं बल्कि अल्फाज़ों पर जोर देने का भी खेल है । दक्खनी का नाम लेते ही मुझे एक लतीफ़ा याद आता है, जो लॉकडाउन के वक्त व्हॉट्सएप पर मंडरा रहा था । यह लतीफ़ा दक्खनी को समझने की मुश्किलों पर है ।
लतीफ़ा कुछ ऐसा है कि एक उर्दू के टीचर जो यूपी से थे, एक दफ़ा हैदराबाद आए । उन्हें चारमीनार जाना था और उन्हें रास्ता नहीं पता था ।
राह चलते एक आदमी से उन्होंने पूछ लिया -
"के जनाब! यह चारमीनार, यहाँ से सीधा जाने पर ही आता है ना?"
आदमी ने जवाब दिया -
"हाओ!"
टीचर को समझ न आया कि यह "हाओ" क्या चीज़ होती है ।
टीचर ने दूसरे शख्स से पूछा ।
फिरसे जवाब मिला - "हाओ!"
जब टीचर ने एक और बंदे से पूछा तो उसने कुछ अलग जवाब दिया |
उसने कहा - "जी हाँ!"
तब जाकर टीचर को समझ आया कि दक्खनी में 'हाओ' का मतलब 'हाँ' होता है । अब शायद आपको थोड़ा थोड़ा समझ आ रहा होगा कि दक्खनी किसे कहते है !
ऐसे ही बहुत से दक्खनी शब्दों को हम रोज़ इस्तेमाल करते है और हमें पता भी नहीं ! ख़ैर, जो असल सवाल ज़ेहन में आता है कि दक्खनी बाकी भाषाओं से इतना मेल क्यों खाती है । इसका जवाब देकर मै शायद आपके सारे सवालों का जवाब दे पाऊँगा । दक्खनी बड़ी पुरानी भाषा है । तजुर्बा रखने वाले लोगों का कहना है कि दक्खनी भाषा तकरीबन १४ वीं से १५ वीं सदी के बीच ईजाद हुई । दक्खनी भाषा हिंदी, मराठी, कन्नड़ ,तेलुगु और पुरानी उर्दू से बनी है । इसीलिए यह भाषा महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ज़्यादा मशहूर है ।
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एक सवाल जो लाज़मी बनता है कि अगर यह भाषा इतनी मशहूर है तो यह लिखने में इस्तेमाल क्यों नहीं होती?
सच कहूँ तो यह भाषा कभी लिखी जाती थी ! बहमनी साम्राज्य के दौर में लगभग सन १५८०, या उससे भी पहले ! दक्खनी बहमनी साम्राज्य की अधिकारिक भाषा हुआ करती थी । मुझे यह भी पता चला कि हैदराबाद के नवाब मोहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह ने दक्खनी में बहुत-सी कविताएँ भी लिखी है । फिर दक्खनी का कागज़ पर इस्तेमाल होना ख़त्म कैसे हुआ?
असल में जब मुगलों ने दक्कन को जीता था, तब उन्होंने निज़ामों को दक्कन का गवर्नर बना दिया । मुगल साम्राज्य के अंदर उर्दू ही अधिकारिक भाषा जैसे हुआ करती थी, जो कि दक्कन पर लागू कर दी गई ।
तो, कुछ ऐसे दक्खनी का पेपर तक का सफ़र ख़त्म हुआ । मगर! मेरा मानना है कि अगर किसी चीज़ को शिद्दत से चाहो तो वह आपके दिल में बस जाती है । और जो दिल में होता है, वह ज़ुबान तक तो आ ही जाता है । कुछ यही हुआ दक्खनी के साथ भी । दक्खनी का इस्तेमाल होना कभी बंद ही नहीं हुआ, जिसकी बदौलत आज भी दक्खनी बड़े पैमाने पर बोली जाती है । क्या समझे ! लिखी नहीं जाती तो भाषा विलुप्त हो जाएगी ? ये कैसी बैगन की बातें सोच रहे हो यार!
बैंगन ❌
बैगन ✔
आपने ज़रूर 'अंडे का फंडा' यह जुमला सुना होगा, पर आज मै आपको बताना चाहता हूँ 'बैगन का मसला' ! बैगन आपके लिए सिर्फ़ एक सब्ज़ी होगी, पर मुझ जैसे कई लोगों के लिए बैगन एक सब्ज़ी से कहीं बढ़कर है ! जी हाँ, दक्खनी बोलने वाले काफ़ी लोग बैगन को अपने जज़्बातों का इज़हार करने के लिए इस्तेमाल करते है । बैगन, दक्खनी में सिर्फ सब्ज़ी नहीं रहती बल्कि विशेषण बन जाती है । बैगन ज़्यादातर एक स्लैंग शब्द जैसे या फिर कोई ख़राब या गलत हुई चीज़ को दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है । मै आपको एक चित्र के सहारे समझाता हूँ ।
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दक्खनी और मराठी का रिश्ता भी हिंदी या उर्दू की तरह ही बहुत खास है । जैसा मैंने पहले बताया था, दक्खनी मराठी से भी बनी है, तो हमें इन दोनों भाषाओं में बहुत-सी समानताएँ नज़र आती है । मुझे याद है कुछ शब्द जैसे 'फ़ज़ीती' हमें दोनों भाषाओं में इस्तेमाल होते हुए नज़र आते है । इन दोनों भाषाओं के ‘फ़ोनेटिक पैटर्न’ में भी कई समानताएँ है, जिसके कारण इन भाषाओं पर ‘द्रविड़ियन इन्फ्लुएंस’ देखने को मिलता है ।
दक्खनी, उर्दू और कन्नड़ में महत्वपूर्ण समानताएँ है, विशेष रूप से दक्कन क्षेत्र में ऐतिहासिक संपर्कों के कारण । इन भाषाओं पर फारसी और अरबी का प्रभाव है, जो दक्कन सुलतानतों के ऐतिहासिक शासन का परिणाम है । उदाहरण स्वरूप, सामान्य शब्दों में ‘दरवाजा’ (दरवाज़ा) और ‘महमान’ (मेहमान) शामिल है । इसके अतिरिक्त, दोनों भाषाओं में रोज-मर्रा की चीजों के लिए समान शब्द है : ‘किताब’ (पुस्तक) दक्खनी और उर्दू में है, जब कि कन्नड़ में इसे ‘पुस्तका’ कहा जाता है । दखनी में ‘रोटी’, उर्दू में भी ‘रोटी’ ही है, जबकि कन्नड़ में इसे ‘रोट्टी’ कहा जाता है । वाक्य रचनाएँ और व्याकरण में भी समानताएँ दिखाई देती है, अक्सर ये वाक्य संरचनाएँ Subject-Object-Verb (SOV) क्रम का पालन करती है ।
अब आपको दक्खनी के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी तो मैंने दे दी है, अब आप इसे कहाँ इस्तेमाल करते है यह आप पर है । अब दिल से दो शब्द कहकर आपसे विदा लेता हूँ ।
छोड़ो कल की बातें, कल कि बाते बैगन की,
पढ़ने लिखनेसे दूर हुई तब भी अयान है दक्खनी !